Saturday, March 23, 2013

मेट्रो में मोफो - समय का सदुपयोग


समय का सर्वोत्तम सदुपयोग यदि कहीं आप लोगों को करता देखेंगे तो वह होगा दिल्ली मेट्रो रेल के सफर में। शहर के व्यस्त और तनावग्रस्त जीवन में आखिर किसके पास इतना समय है कि उसे व्यर्थ गंवाया जाए? एक-एक पल बेशकीमती है।

लोग आपको तरह-तरह की बात-चीत करते मिलेंगे। कुछ लोग अपने दफ्तर के काम पर चर्चा कर रहे होंगे। कुछ लोग अपने घरेलू मामलों पर। कुछ लोग इस देश की वर्तमान दशा पर विचारशील होंगे तो कुछ सामान्य इधर-उधर की बातें कर रहे होंगे। हालांकि दूसरों की बातों को सुनना शिष्टाचार के नियमों की बलि देना है, किन्तु आँखों की भांति कानों को बंद तो किया नहीं जा सकता। और फिर कोई आपके समीप खड़े हो ऊँचे स्वर में बोले तो आप कर भी क्या सकते हैं सिवाए इसके कि ना चाहते हुए भी उसकी बातें सुनें।

कुछ लोग समचार-पत्र या कोई पुस्तक / उपन्यास पढ़ रहे होते हैं तो कुछ युगल जोड़े आँखों ही आँखों में प्रेम के सागर में गोते लगा रहे होते हैं। और यदि किसी कॉलेज की मित्र मण्डली से सामना हो जाए तो समझिए सारा कॉलेज उठकर वहीं आ जाता है। परीक्षा के समय में तो मानिये सारी तैयारी लौहपथ पर ही होती है।

नौकरी-पेशा लोग लैपटॉप कम्प्यूटर पर खटा-खट खटा-खट अपना काम कर रहे होंगे चाहे वह कोई रिपोर्ट हो या कोई प्रेज़ेन्टेशन।

किन्तु समय के सदुपयोग का नोबेल पुरस्कार यदि किसी को मिलना चाहिए तो उन लोगों को जिन्होने सदी के सर्वश्रेष्ठ आविष्कार को अपनाकर अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाया है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ मोबाइल फोन की – मोफो। बहुत ही कम ऐसे संयंत्र होते हैं जो इतने बहूपयोगी, सर्वव्यापी और सर्वगुण सम्पन्न हों। छोटा मोफो, बड़ा मोफो; बटन वाला मोफो, स्पर्श चालित मोफो; बेवकूफ़ मोफो, स्मार्ट मोफो; काली बेरी मोफो, सेब मोफो; 2जी, 3जी, 4जी, सब्जी इत्यादि। मेट्रो में मोबाइल का साथ मानो अलौकिक सुख की अनुभूति।

चाहे जिधर दृष्टि पड़े, कुछ लोग कर्ण-कुण्डलों की भांति ईयरफोन – ईफो लगा अपने पसंदीदा गीत सुन रहे होंगे तो कुछ लोगों की ईफो की ध्वनि इतनी ऊँची होगी कि वे अनायास ही दूसरों को भी सुना रहे होंगे। और ईफो और मोफो तो अब एक ही सिक्के के दो पहलुओं के समान हैं। एक है तो दूसरा तो होगा ही। कुछ लोग ईफो लगा मोफो से अपने सारे काम निपटा रहे होंगे। कोई घर बात कर रहा होगा तो कोई दफ्तर में। आज घर देर से आऊँगा; सर टेंडर जमा करा दिया है; तुम्हे काम करना है तो करो नहीं तो छोड़ दो ... वगैरह वगैरह...।

अपने कानों में ईफो लगाइए और जीवन के मोह-माया के जाल से मुक्त हो जाइए। और कहाँ आपको ऐसा अवसर मिलता है कि आप अपने बाहर की दुनिया से बेखबर हो अपने अंतर्मन में झाँकें और आत्म विवेचन करें। परमानन्द की प्राप्ति और आत्मा के परमात्मा से मिलन का यह सबसे सुगम साधन है।

ईफो लगा मोफो पर बात करने की कला में कुछ लोग तो इतने परिपक्व हैं कि उनके साथ भी आप खड़े हों तो एक मच्छर के भिन-भिनाने जितनी आवाज़ भी ना आए। भई प्यार का दुश्मन तो सारा ज़माना है। किसी ने कुछ सुन लिया तो? कितने ही किशोरों ने अपनी प्रेम प्रतिज्ञाएँ मेट्रो में मोफो पर ली होंगी और ना जाने कितने ही घर बर्बाद ... ना ना ... आबाद हुए होंगे। तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती, नज़ारा हम क्या देखें – मेरी मोफो से नज़र नहीं हटती ...।

कुछ लोग कोई फिल्म या धारावाहिक देख रहे होंगे तो कुछ खेल खेल रहे होंगे। पक्षियों को गुस्सा क्यों आता है (एंग्री बर्ड्स) और मंदिर के लिए कैसे भागा जाता है (टेम्पल रन), ये तो कोई इन लोगों से पूछे।

यदि मेरी मानें तो मेट्रो में मोफो ही वास्तव में समय का सदुपयोग है। कुछ पढ़ना, बात करना या कुछ काम करना समय का दुरुपयोग है। आखिर अधिकांश लोग जो मोफो का वरण कर अपनी मेट्रो यात्रा को मंगलमय बनाते हैं वो कोई मूर्ख थोड़े ही हैं।

किसी शायर की दो पंक्तियाँ याद आती हैं –

            वक्त की कैद में ज़िंदगी है मगर,
            चंद घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद हैं।
            तुमको अपनी कसम जाने-जाँ,
            बात इतनी मेरी मान लो।

मेट्रो में समय का सदुपयोग करो।